【 RNI-HIN/2013/51580 】
【 RNI-MPHIN/2009/31101 】
22 Oct 2018
भोपाल। आपने कभी किसी सरकार को यह कहते नहीं सुना होगा कि एक वर्ग (किसान) को लाभ पहुंचाने के लिए 'सैकड़ों करोड़ के सामान की बर्बादी होती है तो हो जाए', मगर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह बात सीना ठोककर कह रहे हैं। उन्होंने यह बात लाखों टन प्याज सड़ने के संदर्भ में कहा।
शिवराज कहते हैं, "हम जानते थे कि प्याज खराब होगी, फिर भी सरकार ने आठ लाख टन से ज्यादा प्याज खरीदी। प्याज सड़ रही है तो सड़े, उसे किसान नहीं, सरकार फेंकेगी।"
राज्य में इस बार प्याज की बंपर पैदावार के चलते दामों में भारी गिरावट आई। इस पर सरकार ने किसानों से आठ रुपये किलो की दर से प्याज खरीदने का फैसला लिया। अब तक लगभग साढ़े आठ लाख टन प्याज की खरीदी हो चुकी है, उसमें बड़ी मात्रा में प्याज के खुले में रखे होने के कारण सड़ चुकी है और सड़ने का दौर जारी है।
प्याज खरीदी में गड़बड़ी और इंतजाम न होने पर प्याज के सड़ने के मामलों पर मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा, "किसानों की एक-एक प्याज खरीदी जाएगी, जब प्याज खरीदी का निर्णय लिया गया था तो यह बात सामने आई थी कि प्याज को कहां रखा जाएगा, कैसे बिकेगी, तब मैंने कहा था और अभी कह रहा हूं कि प्याज भले ही सड़ जाए, मगर किसानों को उनकी कीमत दी जाएगी, प्याज को किसान नहीं फेंकेगा, फेंकेगी तो सरकार फेंकेगी।"
इससे पहले राज्य के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने बताया कि अब तक साढ़े आठ लाख टन प्याज की खरीदी हो चुकी है, उसमें से बड़े पैमाने पर प्याज सड़ भी रही है। उन्होंने माना कि पिछले साल सरकार ने छह रुपये किलो प्याज खरीदी थी, जिस पर 100 करोड़ खर्च हुआ था, मगर एक करोड़ रुपया भी सरकार केा वापस नहीं आया था। तब भी प्याज खराब हुई थी। इस बार भी प्याज खरीदी में कई सौ करोड़ का नुकसान होने वाला है।
आम किसान यूनियन के केदार सिरोही कहते हैं, "प्याज खरीदी का लाभ किसान नहीं व्यापारियों को हुआ है, कुल खरीदी में मुश्किल से 10 से 20 प्रतिशत प्याज किसान की होगी। सरकार कभी भी यह ब्यौरा नहीं देती कि किस किसान से कितना माल खरीदा गया, वहीं 10 प्रतिशत नुकसान को 100 प्रतिशत बताकर आर्थिक गड़बड़ी कर देती है। प्याज के मामले में भी ऐसा ही हुआ है, पहले व्यापारियों को लाभ पहुंचाने प्याज खरीदी और अब सड़ने के नाम पर गड़बड़ियां की जा रही हैं।"
प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच का कहना है कि सरकार और नौकरशाही की यह जिम्मेदारी है कि वह निर्णय लेने से पहले सुरक्षित रखने का इंतजाम करती। प्याज जो सड़ रही है, नुकसान हो रहा है, वह तो करदाताओं द्वारा अदा की गई रकम है। यह जनता का पैसा है, लेकिन सरकार को इस बात की चिंता ही नहीं है कि यह पैसा किसका है।
सरकार एक तरफ किसानों के हित की बात कर रही है, तो दूसरी ओर अफसर, व्यापारी मिलकर प्याज को सड़ा बताकर कमीशन पर प्याज बेचकर सरकार को चूना लगा रहे हैं, इस बात का खुलासा भी हो चुका है। एक अफसर गिरफ्तार हुआ, तो दूसरे को सरकार ने निलंबित कर दिया। कई व्यापारी प्याज के कारोबार में करोड़पति बन चुके हैं।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सिर्फ सतना जिले में यह पता लगाने का सरकार से आग्रह किया था कि प्याज से कितनों ने करोड़ों कमाए हैं।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि वास्तव में किसान की प्याज खरीदी जाती तो अच्छा होता, मगर सरकार किसानों की आड़ में व्यापारियों की प्याज खरीदकर, कमीशन पर व्यापारियों को ही बेच रही है। वहीं बड़े पैमाने पर प्याज सड़ रही है।
उन्होंने कहा कि यह जनता का पैसा है और सरकार छाती ठोककर कह रही है कि प्याज सड़े तो सड़े! इस प्याज को गरीबों में मुफ्त में बांट दिया जाता तो बेहतर होता। इस खरीदी से किसान को कोई लाभ नहीं हुआ है।
याद रहे कि जब लाखों टन गेहूं सड़ने की बात आई थी, तब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि इसे गरीबों में बांट दिया जाता तो बेहतर होता। मध्यप्रदेश की सरकार भी गरीबों को मुफ्त में प्याज बांट सकती थी, मगर ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि प्याज खराब होने की आड़ में किसी को करोड़ों के वारे-न्यारे जो करने थे।
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