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क्या नारी रक्षा कवज साबित होगा अपहरण के मामलों में (अधिकार पत्र)

13 Jan 2021

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क्या नारी रक्षा कवज साबित होगा

अपहरण के मामलों में (अधिकार पत्र) 


नारी की लाज और लापता बच्चो की तलाश में क्या अव्वल है शिवराज राज?


अनम इब्राहिम

मध्यप्रदेश: भोपाल प्रदेशभर में काल के गाल में समाती महिलाओं की आबरू की कब होगी मुक़म्मल हिफाज़त? यही सवाल हमेशा घर से तन्हा बाहर निकलती सूबे की हर नारी के मन मे उठता आया है की महिलाओं को सुऱक्षा का अमलीज़ामा पहनाने की तमाम प्रशासनिक कवायदे कब सफलता के शिखर को चुएगी? प्रदेश में बलात्कार, अपहरण, गैंगरेप व नाबालिग़ बालिकाओं को बेहला-फुसलाकर हवस का निवाला बनाने वाले वेहसी दरिंदों के हौसले कब पस्त पड़ेंगे? आख़िर कब बेख़ौफ़ हो निर्भयता से नारी नरपिशाचों से जूझेगी?बहरहाल वैसे तो भारतवर्ष में नारी रक्षा के रखवाले होने के तमाम दावों की दलीलों को दोहराने वाले कई सियासी देवताओ के दिखावेदार भाषण तो आपने कई राजनैतिक मंचो पर सुने होंगे लेकिन नारी रक्षा का नज़रिया मध्यप्रदेश के वज़ीर शिवराज सिंह चौहान का तनिक अलग है जो प्रदेश की महिलाओं पर बढ़ते उत्पादिकरणओ पर खाली भभूकता से भाषण ही नही देते बल्कि वो नारी रक्षा के लिए उचित नियम लागू कर हरचंद कोशिशों के करिश्मे भी कर के दिखाते हैं ऐसा हम नही कहते बल्कि हाल ही में आए महिला अपराधों में कमी के आंकड़े कहतें है, जिनका ज़िक्र खुद मुख्यमंत्री ने मिंटो हॉल में चल रहे सम्मान अभियान के शुभारंभ के मौक़े पर किया है वैसे यहां तक तो ठीक है परन्तु मुख्यमंत्री का अपहरण के मामलों में परिवार को मिलेगा अधिकार पत्र का फरमान अपहरण हुए परिवार के लिए क्या कामगार साबित होगा? तो जानिए विस्तार से।

क्या है अपहरण के मामलों में मिलने वाला परिवार को (अधिकार पत्र)?


अपहरण के मामलों में परिवार को मिलेगें अधिकार पत्र से मामले में चल रही कार्यवाही की कारगुज़ारी का जायज़ा लेना व उसके ख़ुलासे क्यों नही हो पाए उसकी अधिकारिता तौर पर गौर-ओ-फिक्र की विभागीय सामूहिक मश्क करना समझा जा सकता है ताकी पुरजोशी से महिला अपराध पर नकेल कसी जा सके जिसके लिए  पुलिस अधिकारियों के दायित्व भी तय किए गए हैं सूबे की जनता को सुरक्षा का एहसास कराने की गरज़ से 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि मध्यप्रदेश में अपराधियों पर अंकुश लगाने का कार्य पूरी ताकत से किया जाएगा। आम लोगों को कानून के राज का एहसास करवाया जाएगा। गत 08 माह में अपराधियों के विरूद्ध की जा रही सख्त कार्यवाही का परिणाम है कि विभिन्न तरह के अपराधों में 15 से लेकर 50 प्रतिशत तक की कमी आयी है। बालिकाओं और महिलाओं से जुड़े अपराधों में लिप्त लोग नरपिशाच हैं। उन्हें किसी भी स्थिति में न छोड़ा जाए। बलात्कारियों को तो फाँसी ही मिलना चाहिए। प्रदेश में गुम बालिकाओं के संबंध में विस्तार से समीक्षा की गई है। अपहृत बच्चे की बरामदगी के लिए चैकलिस्ट के अनुसार कार्यवाही होगी। परिजनों को एक रिकार्ड पत्र दिया जाएगा जिसमें पुलिस द्वारा की जा रही विवेचना का विस्तृत विवरण होगा। अधिकार पत्र में जानकारी रहेगी कि कितने दिनों में क्या-क्या कार्यवाही की गई है। इस व्यवस्था में अब अपहृत होने वाले बच्चे के परिजन के साथ प्रत्येक 15 दिन में थाना प्रभारी और प्रत्येक 30 दिन में एसडीओपी केस डायरी के साथ बैठेंगे। इसमें यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अधिकार पत्र के अनुसार कार्यवाही हुई है या नहीं। 


लाज़मी है कि इस अधिकार पत्र से अगवा हुई बालिकाओं के परिवार को इस बात का एहसास होता रहेगा कि संज़ीदगी से पुलिसिया कार्यवाही चल रही है और थानाप्रभारी जवाब देने के भय से मामले में गम्भीरता दिखाएगा व अन्य उच्च अफ़सर भी मामले का जायज़ा लेते रहेंगे लेकिन सवाल यह है कि अधिकार पत्र का अमल कितना सफ़ल होगा? स्वराज न्यूज़ यह नही कहती कि मध्यप्रदेश की पुलिस  निकम्मी है बल्कि यह जरूर कहता है कि वो कोलू के बेल की तरह खुलासा करने के लिए महंत करती है वजह सिर्फ़ हाईटेक गैजेट्स के मोहताज़ होना है, अन्य राज्यो की तुलना में मध्यप्रदेश पुलिस के पास हाईटैक सुविधा ऊंट के मूह में जीरा समान है शायद यही वजह है कि गम्भीर मामलों  के ख़ुलासे खोलने में पुलिस को एड़ी चोटी का जोर मारना पड़ता है जिसकी वजह से रसूखदार वज़नदार बाहुबली के इशारों पर किसी बेगुनाह को फसाना आसान है व कसूरवार को छुड़ाना भी आंटे में बाल निकालने जैसा आसान है। मंत्री अफ़सर की औलाद का अपहरण होतो ख़ुलासे के लिए पुलिस आसमान सर पर उठा लेती है लेकिन जब ग़रीब की बेटी का अपहरण होतो बाज मौक़ों पर निचले स्तर से ही पुलिस कछुआ चाल चल कहती नज़र आती है कि भाग गई होगी किसी के साथ, फिर चाहे नाबालिग़ का रोज बलात्कार हो रहा हो, हम यह नही मानते की पुलिस खुलासा नही करना चाहती बल्कि वो पुरजोशी से परिवर्तन होते इस यंत्र सुविधाओ के दौर में बिना गेजेट के अपने आप को असहाय मोहताज़ महसूस करती है बस सिर्फ खास मामलों में ही किसी खास के हस्तक्षेप के चलते पुलिस बौखलाए शिकारी की तरह धरपकड़ शुरू कर अपराध का सिरा तलाश कर लेती है या किसी बेक़सूर को सरकारी महमान बना जेल की कालकोठरी में ढकेल देती है ऐसे हालातो में प्रदेश के मुख्यमंत्री को बातों की तरह तहक़ीक़ात के लिए थाना स्तर पर भी कीमती उपकरणों के इंतेज़ाम करवाना चाहिए तब उनकी इस मुद्दे पर कही गई बातों में दोहरी ताक़त का विस्वास उतपन होगा लेकिन प्रदेश के कई थानों के हाल बदहाल अवस्था मे है तो कई थाने ऐसे भी हैं जो किराए पर चल रहे हैं या पाल बांधकर टिन के टपरे के नीचे तो कई थाने ऐसे भी हैं जिनकी जर्जर इमारतें मरम्मत को तरस रही है तो कई की छत से बारिश में टपटप टिपटिप पानी गिरता रहता है अब मामा आप ही बताईये पुलिस के ऐसे ख़स्ता हाल में ख़ुलासे का बवाल कैसे खड़ा करा जा सकता है,रही बात ग़ायब हुए मासूम बच्चों की तलाश की तो यह एक बहोत बड़ा दर्द है शबक़ है सामाज के लिए जिससे इबारत हासिल करना चाहिए हर परिवार को, विस्तार से....

NCRB के मुताबिक़ 2019 में मध्यप्रदेश से 11 हज़ार 22 बच्चे ग़ायब हुए!

लापता ग़ायब गुमसुदा लफ्ज़ अलग अलग नही है लेकिन ज़बरन अपहरण करना व बहला-फुसलाकर अगवा करना दोनों अलग अलग शब्द है परन्तु यह तमाम लफ़ज़ी लुकमे एक  माँ के शब्दकोश में एक समान होते हैं जो बिस्तर की सिलवटों में बढ़ोतरी करते हैं हर करवट पर यह तमाम लफ्ज़  (तस्बीह) माला के दानों की तरह एक के बाद एक बदलते रहते हैं की उस की औलाद ग़ायब कैसे हुई ? कहां होगी? जिंदा है या मर गई?अपरहण हुआ है या गुम हुआ है?उसका यौनशोषण हो रहा है या उस के बदन के अंदरूनी अंक को बेच दिया गया? या उससे भींख मंगवाई जा रही है या ऐसे हज़ारो सवाल पलपल में मन के अंदर पैदा होते हैं लेकिन इस का जवाब किसी के पास नही एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में मध्यप्रदेश से तक़रीबन 11हज़ार22 बच्चे लापता हुए लेकिन एक अच्छी बात रिकवरी के मामले में अन्य राज्यों से ज़्यादा मध्यप्रदेश अव्वल स्थान पर रहा है 2019मध्यप्रदेश में 8,572 मासूम बच्चियां लापता हुई तो वही 2019 में ही 2,450 बच्चे लापता हुए , 2019  देशभर में नाबालिग़ बच्चो के ख़िलाफ़ अपराध क़ायम होने की वारदात मध्यप्रदेश में दूसरे पायदान पर रही जहां कुल कायमी की तादाद19028 रही तो वहीं 2019 में नाबालिग़ से बलात्कार के मामलों में भी मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर बना रहा जहां 3349 बालिकाएं बलात्कार का शिकार हुई,साथ ही मध्यप्रदेश में नाबालिग़ से बलात्कार/पोस्को हत्या के मामले में भी प्रदेश दूसरे स्थान पर बना रहा जहां मामलों की संख्या 2019 में 18 रही,तो वहीं पोस्को अधिनियम के तहत योन अपराध में मध्यप्रदेश तीसरे स्थान पर बना रहा जहां मामलों की तादात 2019 में 6123 रही थी।

यह तमाम आंकड़े सुनकर अपने बच्चों को हिफाजत की सलाखों के में बंद करने को दिल चाहेगा.

मध्यप्रदेश सियासत बीजेपी दफ़्तर जुर्मे वारदात महिला अपराध बाल अपराध


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