अख़बार की दुनिया मे बेबाक़ी का सबसे बड़ा कलेजा

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क्या सूली पर चढ़ने वाले अहमदाबाद में आतंक की गाज गिराने दहशतगर्दो को मिलेगी न्यायिक राहत?

19 Feb 2022

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Anam Ibrahim

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14 साल पहले अहमदाबाद जब शोलो में सुलग रहा था तब बारूद बरपाते आतंकी तबाही के हाथों को थामने वाले हाथ किसके थे?


जनसम्पर्क Life

National News Network


दिल्ली/अहमदाबाद: गुजरात मे गुज़रे गम की कारगुज़ारी से कलेजे कांप उठते है या यूं कहें कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं या यूं कहें की 2008 की सुबह शाम कभी ना आए या यूं कहे की देढ़ घण्टे बम बारूद से शहर को सुलगाने वाले हाथों में लकवा लग जाये। जो भी कहेंगे वो सब आतंक के शिकार हुए बेक़सूरो के दर्द के आगे कम है। अहमदाबाद बम धमाकों के कसूरवारों को मुत्युदण्ड व कारावास की सजा सुना कर भले ही न्यायपालिका सूली पर चढ़ाकर न्याय करे लेकिन दहशतगर्दो के बरपाए बारूदी धमाकों से बेकसूर अहमदाबाद के बाशिन्दों पर जो गुज़री है जो उन्होंने खोया है उन यतीमों मज़लूमों निर्दोषों नन्हे फ़रिश्तों की सरपरस्ती रिश्तों की दुनिया की कोई भी अदालत भरपाई नही कर सकती । गुजरात के गम को कम करना या उसके दुख को बांटना तो हर एक देश के नागरिक के लिए लाज़मी है लेकिन बेवज़ह बम धमाकों के शिकार बने लोगो का दर्द बाटा नही जा सकता। हां हादसे के देढ़ दशक गुजरने पर आ गए हो तो उनके दर्द में शरीक होकर गले लग उनके साथ होने का एहसास दिलाया जा सकता है। जो गुज़री हैं अपने घरोंदे व सायापरस्ती के रिश्तों को गँवाकर उससे उठे ग़म की पीड़ा को वही जाने लेकिन जो गुज़री हैं बाखुदा बेरहमी की इंतिहा को पार कर बहुत ज़्यादा उठाईगिरी संगदिलाना गुज़री हैं। दहशतगर्दी के बारुदाना बम से जो जल मर गए वो तो बयाँ नही कर सकते आपबीती लेकिन जिन्हें अनचाहे आतंक के हमले से मौत ना आई उनके दिलो से पूछो की रह-रह कर पल-पल में बीता कल याद करके कैसे गुज़रती हैं? आतंक के शिकार हाहाकर अत्याचार से रूबरू होकर बच जाने वालों के दिलो में इत्मिनान तो नही लेकिन हाँ ख़ुद पर गुज़री आँखो-देखी हुबहू भयभती के मंज़र का ख़ौफ़ अभी भी बाक़ी हैं जिसे याद करके पौशिदा दिल आँसुओ से आज भी पसीज जाता हैं। जिनकी कारगुज़ारी के किससे तो अनगिनत हैं लेकिन चंद पर गुज़री ग़म की गुजरान के तबाह हुए झोपड़ी मकान के चुनिंदा किससे जनसम्पर्क Life की लिंक को क्लिक करके खंगाले जा सकते हैं।

दर्दनाक खौफनाक मंजर को याद कर आज भी दिल दहल जाते हैं हादसे के शिकार हुए लोगो के 

2008 बम धमाकों में पिता व 11 साल के भाई को गंवाने वाले यश उस खौफनाक मंजर को आज भी  याद कर सहम जाते हैं। विस्फोट में बुरी तरह से घायल होने के उपरांत आइसीयू में जिंदगी व मौत से संघर्ष करने वाले यश की उम्र उस वक़्त महज़  नौ साल थी।

अहमदाबाद, गुजरात  में हुए बम धमाकों में लैब टेक्नीशियन पिता और 11 साल के भाई को गंवाने वाले यश व्यास उस खौफनाक मंजर को याद कर आज भी सहम जाते हैं। आतंकी विस्फोट में बुरी तरह से घायल और चार महीने तक आइसीयू में जिंदगी और मौत से संघर्ष करने वाले यश की उम्र उन दिनों केवल नौ साल की थी  साथ ही उस दौरान उनके पिता अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल में कैंसर विभाग में लैब टेक्नीशियन थे। विस्फोट की वजह से आज भी वह कम सुनते हैं। अब बीएससी दूसरे वर्ष में पढ़ने वाले 22 साल के यश कहते हैं कि उन्हें और उनकी मां को लंबे समय से इस दिन का इंतजार था। उन्होंने कहा कि जिन 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा हुई है, उन्हें भी फांसी की सजा होनी चाहिए थी, क्योंकि ऐसे लोग किसी भी तरह की दया रहम के पात्र नहीं हैं।

बम कांड में यश के पिता और भाई मारे गए थे

यश ने बताया कि घटना वाले दिन उनके पिता उन्हें और उनके भाई को अस्पताल के खुले मैदान में साइकिल चलाना सीखा रहे थे। शहर के दूसरे भागों में हुए विस्फोट में घायलों को एंबुलेंस से शाम 7:30 बजे अस्पताल लाया गया तो उनके पिता भी उनकी मदद के लिए ट्रामा सेंटर चले गए। वो लोग भी उनके साथ थे। अचानक ट्रामा सेंटर में विस्फोट हुआ, जिसमें उनके पिता और भाई की मौत हो गई। ट्रामा सेंटर में दो बम धमाके हुए, जिसमें कई लोग मारे गए और कई घायल हुए थे।

साथ ही साथ डाक्टर दंपत्ति  की भी मौत हुई थी

सरकारी अस्पताल में ही तैनात डा. प्रेरक शाह उस दिन अपनी पत्नी किंजलकवशाह  को लेकर महिला डाक्टर को दिखाने आए थे। किंजल गर्भवती थीं। अस्पताल में हुए धमाके में दोनों मारे गए। डा. प्रेरक के पिता रमेश शाह ने फैसले पर संतोष जताते हुए कहा कि सभी को फांसी की सजा होनी चाहिए।

सड़क पर सैंडविच बेचने वाले काडिया ने पत्नी को खो दिया था

गुजरात पुराने अहमदाबाद शहर के रायपुर चकला मौहल्ले में ठेले पर सैंडविच बेचने वाले निर्धन जगदीश काडिया के दिल में विस्फोट का दर्द आज भी ताजा है। उस दिन उनके साथ उनकी पत्नी हसुमति काडिया भी थीं। उनके ठेले के पास ही बम धमाका हुआ था और उनकी पत्नी की मौत हो गई थी। अब 65 साल के हो चुके काडिया कहते हैं वह आज भी उस दिन को और अपनी पत्नी को नहीं भूले हैं। धमाके के बाद से उनकी जिंदगी वीरान हो गई और एकाकी जीवन जी रहे हैं। 

अब ऐसे में न्ययालय ने 14 साल बाद आरोपियों को सजा ए मौत का फैसला तो सुना दिया लेकिन अब भी आरोपियों के पास उच्च न्ययालय सर्वोच्च न्ययालय के दरवाजे खुले हुए है आखिर कब ख़त्म होगा देहस्तगर्दी का माहुल? कब जाएगा जागरूक नागरिक? कब नफरतो की मंडी होगी बंद ? जल्द पढ़े हमारे साथ इस ही जगह पर

मध्यप्रदेश जुर्मे वारदात गम्भीर अपराध ताज़ा सुर्खियाँ खबरे छूट गयी होत


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